सैलरी अकाउंट वह खाता होता है, जिसमें कर्मचारियों की तनख्वाह जमा होती है। यह खाता वेतनभोगी ग्राहकों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। सैलरी अकाउंट से न केवल वेतन का लेनदेन आसान बनता है, बल्कि यह कई सुविधाएं और लाभ भी प्रदान करता है।
सैलरी अकाउंट के फायदे (Benefits of Salary Account):
- मिनिमम बैलेंस की छूट: सैलरी अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस रखने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे पेनल्टी का झंझट खत्म हो जाता है।
- फ्री एटीएम ट्रांजैक्शन: सैलरी अकाउंट होल्डर्स को महीने में फ्री एटीएम ट्रांजैक्शन की सुविधा मिलती है।
- ओवरड्राफ्ट की सुविधा: 2 साल या उससे अधिक पुराने सैलरी अकाउंट पर ओवरड्राफ्ट की सुविधा दी जाती है, जिसकी सीमा दो महीने की बेसिक सैलरी के बराबर होती है।
- प्री-अप्रूव्ड लोन: सैलरी अकाउंट धारकों को बैंक की ओर से प्री-अप्रूव्ड पर्सनल लोन की सुविधा मिलती है।
- पर्सनल एक्सीडेंट इंश्योरेंस: सैलरी अकाउंट होल्डर्स को मृत्यु पर 20 लाख रुपये तक का पर्सनल एक्सीडेंट इंश्योरेंस मिलता है।
- पर्सनलाइज्ड चेक-बुक: सैलरी अकाउंट के साथ ग्राहक को पर्सनलाइज्ड चेक-बुक की सुविधा मिलती है।
- जनरल अकाउंट में बदलने का नियम: अगर तीन महीने तक सैलरी जमा नहीं होती, तो यह खाता जनरल अकाउंट में बदल जाता है।
सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट में अंतर:
- खाता खोलने की प्रक्रिया: सेविंग अकाउंट कोई भी खोल सकता है, जबकि सैलरी अकाउंट केवल किसी संगठन के कर्मचारी के लिए खुलता है।
- मिनिमम बैलेंस: सेविंग अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस जरूरी है, जबकि सैलरी अकाउंट में ऐसा कोई नियम नहीं।
- सुविधाएं: सेविंग अकाउंट पर अतिरिक्त सुविधाओं के लिए शुल्क लिया जाता है, जबकि सैलरी अकाउंट में ये सुविधाएं मुफ्त होती हैं।
- उद्देश्य: सेविंग अकाउंट का उद्देश्य बचत को बढ़ावा देना है, जबकि सैलरी अकाउंट का मुख्य उद्देश्य वेतन का लेनदेन है।
कौन खोल सकता है सैलरी अकाउंट?
सैलरी अकाउंट केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए खुलता है, जो किसी संगठन के कर्मचारी हों। संगठन का बैंक के साथ टाई-अप होना अनिवार्य है। यदि कर्मचारी के पास पहले से खाता नहीं है, तो नियोक्ता खाता खोलने में सहायता करता है।