हमारा देश खेती प्रधान देश है। देश के लगभग 75% जनता खेती के व्यवसाय के साथ जुड़ी हुई है। वैसे में देश में बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है। उन दिनों में धान की कटाई भी होने लगती है। धान की कटाई के बाद बचाने वाला फसल अवशेष को पराली कहा जाता है। पराली उन दिनों किसानों के साथ-साथ सरकार के लिए भी एक बड़ी समस्या बन जाती है। एनजीटी के आदेश के बाद उसे जलाना अपराध है। ऐसे में पराली निस्तारण करना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। लेकिन आधुनिक कृषि यंत्र बैरल चुटकियों में पराली को निस्तार करने में किसानों की मदद करता है। जिनके बाद किसानों के लिए पराली आमदनी का जरिया बन जाती है। Parali burning news
बैरल का उपयोग
कृषि यंत्र के एक्सपर्ट सरदार अवतार सिंहने बताया कि बैरल पराली निस्तारण के लिए बेहद ही कारगर है। बैरल धान की कटाई के बाद बची हुई पराली को पहले छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है। फिर कटी हुई पराली को एक चेंबर में डालता है। एक निश्चित मात्रा में पराली दबाने के बाद उसे एक मजबूत रसि या तार से बांधकर गटर में बना देता है। अतः या घटक चैंबर से बाहर निकाल दिया जाता है। बैरल चलने से पहले रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया जाता है।
बैरल के आ जाने पर हुआ फायदा Parali burning news
अवतार सिंह ने यह भी बताया कि बैरल के आ जाने पर पराली जलाने की घटनाओं में कमी हो जाएगी। पराली गेटों में बांधकर खेत में ही दटा जा सकता है। जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ती है। मिट्टी में प्रतियोगिता बढ़ती है। पराली के गैस्ट्रो का उपयोग पशुओं के चारे के लिए भी किया जा सकता है। पराली गठन का उपयोग बायोगैस उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है। जिससे किसानों का आमदनी भी बढ़ती है। एक एकड़ खेत में करीब 20 क्विंटल पराली निकलती है। अवतार सिंह ने बताया कि एक बैरल रोजाना 20 से 30 एकड़ खेत से पराली को उठा सकता है। किसान इस प्रणाली को पेपर मिल या बायोगैस बनाने की कंपनी में बेचकर पैसा कमा सकता है। बैरल को चलाने के लिए 50 हॉर्स पावर या इससे अधिक क्षमता वाला ट्रैक्टर की जरूरत रहती है।
सरकार द्वारा 50% से 80% तक का सब्सिडी दिया जाता है
अवतार सिंह यह भी बताया कि एक बैरल चलाने के लिए पहले ही किसानों को रेकर की आवश्यकता होती है। रेकर धान की कटाई होने के बाद फैले हुए धान को एक ही लाइन में इकट्ठा करता है। जिससे बैरल का काम बेहद आसान हो जाता है। रेकर को चलाने के लिए 25 से 30 हॉर्स पावर ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। बैरल या रेकर खरीदने पर सरकार द्वारा 50% से 80% तक का सब्सिडी दिया जाता है। बैरल की कीमत करीब 17 लाख रुपया वह रेकर की कीमत 4 लाख रुपया होती है। अलग-अलग कंपनी और अलग-अलग क्षमता के हिसाब से उनके रेट कम या ज्यादा भी हो सकता है।
किसानों से योजना का लाभ उठाने का आग्रह
इस योजना से पराली जलाने की वजह से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि हर संभव तरीके से किसानों का कल्याण करने के लिए प्रदेश सरकार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है उन्होंने किसानों के इस योजना का लाभ उठाने के लिए आग्रह किया है।